अपनी निर्मित फिल्मों के जरिये वी.शांताराम ने दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनायी
29-Oct-2021 04:38 PM 8503
पुण्यतिथि 30 अक्टूबर के अवसर पर मुंबई, 29 अक्टूबर (AGENCY) भारतीय सिनेमा जगत में वी.शांताराम को एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अर्थपूर्ण फिल्में बनाकर करीब छह दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों में अपनी खास पहचान पहचान बनाई। वी. शांताराम (राजाराम वानकुदरे शांताराम) का जन्म 18 नवंबर, 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। उनका रुझान बचपन से ही फिल्मों की ओर था और वह फिल्मकार बनना चाहते थें। करियर के शुरुआती दौर में गंधर्व नाटक मंडली में उन्होंने पर्दा उठाने का भी काम किया। वर्ष 1920 में वह बाबू राव पेंटर की महाराष्ट्र फिल्म कंपनी से जुड़ गए और उनसे फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखने लगे। शांताराम ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1921 में प्रदर्शित मूक फिल्म 'सुरेख हरण' से की। इस फिल्म में उन्हें बतौर अभिनेता काम करने का अवसर मिला। इस बीच वी. शांताराम की मुलाकात भी.जी दामले, एस कुलकर्णी, एस फतेलाल और के आर धाइबर से हुई जिनकी सहायता से उन्होंने वर्ष 1929 में प्रभात कपंनी फिल्म्स की स्थापना की। प्रभात कंपनी के बैनर तले शांतराम को गोपाल कृष्णा, खूनी खंजर, रानी साहिबा और उदयकाल जैसी फिल्में निर्देशित करने का मौका मिला। वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म 'अयोध्यचे राजा' उनके सिने कैरियर की पहली बोलती फिल्म थी। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म 'सैरंधी' को शांतारम रंगीन बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जर्मनी का दौरा किया और वहां के लैब अगफा लैबोरेटरी में फिल्म को प्रोसेसिंग के लिए भेजा, लेकिन तकनीकी कारण से फिल्म पूर्णत रंगीन नहीं बन सकी। उन्होंने कुछ दिनों जर्मनी में रहकर फिल्म निर्माण की तकनीक भी सीखी।...////...
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