14-May-2025 02:53 PM
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बेगूसराय/पटना, 14 मई (संवाददाता) बिहार के बेगूसराय की फिजाओं में फुटबॉल का रंग घुला है और यह सिर्फ फ्लाईओवर के खंभों पर लिखा एक नारा नहीं है, यह एक खामोश क्रांति की दास्तान है, जो बिहार के एक गुमनाम कोने में टूटी हड्डियों और आहत स्वाभिमान के साथ शुरू हुई थी।
राजधानी पटना की भागदौड़ से दूर बरौनी के एक शांत मुहल्ले में फुटबॉल यूं ही नहीं आ गई। इसे अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। स्वतंत्रता सेनानी यमुना भगत की विरासत के रूप में पहचाना जाने वाला यह मैदान लगभग 80 साल पहले फुटबॉल का अप्रत्याशित घर बन गया था।
वहीं, इस कहानी का असली मोड़ वर्ष 1990 में आया, जब स्थानीय लड़कियों की एक अनुभवहीन और आत्मविश्वास से रहित टीम एक प्रदर्शनी मैच में मुजफ्फरपुर की धुरंधर टीम के सामने बुरी तरह हार गई। यह हार मैदान की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित मैच में सिर्फ शारीरिक चोटें नहीं दे गई बल्कि हर खिलाड़ी के आत्मसम्मान को भी गहरा आघात पहुंचा गई। कुछ लड़कियां लंगड़ाती हुईं लौटीं, कुछ को स्ट्रेचर पर ले जाना पड़ा और सबके जख्म जिस्मानी दर्द से कहीं ज्यादा गहरे थे।
उस अपमानजनक हार ने शर्मिंदगी नहीं बल्कि एक दृढ़ संकल्प को जन्म दिया। पूर्व फुटबॉलर और स्थानीय शिक्षक चंद्रशेखर, जिनकी बातों में पीढ़ियों का अनुभव झलकता है, उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, “हमें अपमानित किया गया था लेकिन हमने उस दर्द को एक मकसद में बदल दिया।”
चंद्रशेखर बताते हैं कि इस मैदान की नींव स्वतंत्रता से पहले ही पड़ गई थी, जब यमुना भगत ने जेल से रिहा होने के बाद समाज के पिछड़े वर्गों के युवाओं को शिक्षित करने के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। लेकिन, असली बदलाव तो वर्ष 1990 में आया, जब उन्होंने मैदान की 50वीं वर्षगांठ मनाने का फैसला किया। उन्होंने आगे कहा, “हमने दो टीमों को प्रदर्शनी मैच के लिए बुलाया था लेकिन सिर्फ एक टीम आई। आयोजक होने के नाते हम शर्मिंदा थे और अचानक ही हमने एक टीम खड़ी कर दी, जिसमें कुछ ऐसी लड़कियां थीं जिन्होंने कभी फुटबॉल नहीं खेला था।”
चंद्रशेखर की आवाज में उस दिन का दर्द आज भी महसूस किया जा सकता है। वह कहते हैं, “दुर्भाग्य से हमारी कुछ लड़कियों की टांगें टूट गईं और ज्यादातर घायल हो गईं। उस हार ने हमें अंदर तक हिला दिया। हम अंदर से घायल थे। पूरे गांव ने मिलकर फैसला किया कि अब एक टीम बनेगी, हम कुछ कोच रखेंगे और उन्हें पैसे देने के लिए हम चंदा जुटाएंगे।”
एक साल बाद अटूट साहस और पूरे समुदाय के समर्थन से सराबोर बरौनी की लड़कियां फिर से मैदान पर उतरीं, सिर्फ खेलने के लिए नहीं बल्कि मुकाबला करने के लिए। उन्होंने आरा को 1-0 से हराया, जिसमें पूर्व भारतीय स्ट्राइकर पूनम भी शामिल थीं। यह जीत सिर्फ स्कोरलाइन से कहीं ज्यादा उस दृढ़ संकल्प की गवाही थी। हम यहां हैं और अब हम मुकाबला करेंगे।
अगले तीन दशकों में बरौनी फुटबॉल के सपनों का पालना बन गया, जिसका नेतृत्व चंद्रशेखर जैसे गुमनाम नायकों और पूर्व मोहन बागान गोलकीपर संजीव कुमार सिंह ने किया। संजीव ने तो सेना की एक स्थिर नौकरी को भी छोड़कर अपने पहले प्यार फुटबॉल के लिए इस मैदान को चुना। संजीव ने बड़ी ईमानदारी से स्वीकार किया कि फुटबॉल के प्रति उनका समर्पण शायद उनके परिवार की जरूरतों और इच्छाओं की उपेक्षा का कारण बना लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि किसी को तो यह जिम्मेदारी उठानी ही थी।
भावुक संजीव कहते हैं, “मेरे परिवार के लिए शायद मैं बेकार हूं लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं उन्हें सहारा देने की कोशिश करता हूं लेकिन फुटबॉल मेरी पहली मोहब्बत है। सब अपनी नौकरी में व्यस्त हैं इसलिए किसी को तो यह जिम्मेदारी उठानी ही थी। यह एक ऐसा बलिदान है, जो किसी मजबूरी से नहीं बल्कि प्यार से आया है। यही वह बलिदान था जिसने इस मैदान को 2018 में संतोष ट्रॉफी मैचों की मेजबानी करने में मदद की और अब, यह भारत के प्रमुख यूथ गेम्स का हिस्सा बना है।”
बेगूसराय आज 12 बार की राज्य चैंपियन है। बिहार की टीम में शामिल 70 फीसदी लड़कियां इसी क्षेत्र से हैं और यहां फुटबॉल की संस्कृति सामुदायिक गौरव में गहराई से समाई हुई है। अब बरौनी को राष्ट्रीय मानचित्र पर जगह मिली है और यहां खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 का आयोजन हो रहा है।
यह तीन दशकों की खामोश मेहनत, पूरे गांव के त्याग और दिल से खेली गई फुटबॉल के लिए गूंजती तालियों की कहानी है न कि सिर्फ बूट पहनकर मैदान पर दौड़ने की। खेल प्राधिकरण के स्काउट्स यहां युवा प्रतिभाओं को पहचानने के लिए मौजूद हैं और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनमें से कई इसी मिट्टी से निकलेंगे।
कई लोगों के लिए खेलो इंडिया यूथ गेम्स सिर्फ एक मंच है लेकिन बरौनी के लिए यह एक ऐसे गांव का उत्सव है, जिसने अपने दिल और शरीर पर लगी चोटों को अपनी विरासत में बदल दिया। यह कहानी उस अटूट भावना की है जो हार को जीत में और दर्द को प्रेरणा में बदल सकती है।...////...