18-Nov-2024 11:42 PM
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नई दिल्ली, 18 नवंबर (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने उस आदेश को स्थगित कर दिया, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के सचिव को निर्देश दिया गया था कि वह 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मृत्युदंड की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआना से संबंधित दया याचिका दो सप्ताह के भीतर फैसला करने के अनुरोध के साथ उनके (राष्ट्रपति) समक्ष पेश करें।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर सोमवार सुबह में पारित किये गये आदेश पर रोक लगा दी।
श्री मेहता ने न्यायालय से आग्रह किया कि आदेश को प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस मुद्दे में "संवेदनशीलता" शामिल है। इसकी सुनवाई शुक्रवार को होनी चाहिए।
पीठ के समक्ष उन्होंने कहा कि संबंधित फाइल राष्ट्रपति के पास नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय के पास है।
इसके बाद न्यायालय ने उनके (श्री मेहता) के अनुरोध पर सहमति जताई और मामले को अगले सोमवार के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, न्यायालय ने राजोआना द्वारा दायर रिट याचिका में केंद्र सरकार की ओर से वकील के उपस्थित न होने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिसमें उनकी दया याचिका पर निर्णय लेने में 12 वर्षों की अत्यधिक देरी पर सवाल उठाया गया था।
पीठ ने सुबह अपने आदेश में कहा था, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता मृत्युदंड की सजा काट रहा है, हम भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश देते हैं कि वे मामले को उनके (राष्ट्रपति) समक्ष पेश करें और दो सप्ताह के भीतर इस पर विचार करने का उनसे अनुरोध करें।"
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अन्य मामलों पर निर्णय हो चुका है, लेकिन याचिकाकर्ता के मामले में सरकार ने कहा है कि निर्णय लेने का यह सही समय नहीं है।
उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, "इस पर निर्णय कब होगा, जब उसका (याचिकाकर्ता)जीवन समाप्त हो जाएगा, तो।"
इसके बाद पीठ ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता के पेश न होने पर (सुबह में) नाराजगी व्यक्त की थी।
उधर, पंजाब सरकार ने कहा है कि केंद्र सरकार ने पहले दावा किया था कि अगर उसे रिहा किया गया तो यह राष्ट्रीय खतरा होगा।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने 04 नवंबर को राजोआना को अंतरिम राहत देने पर विचार करने से इनकार कर दिया था। राजोआना ने अपनी दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण अपनी सजा कम करने की गुहार लगाई थी।
राजोआना की ओर से पेश श्री रोहतगी ने कहा था कि यह एक चौंकाने वाला मामला है क्योंकि याचिकाकर्ता 29 वर्षों से हिरासत में है और कभी जेल से बाहर नहीं आया।
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उस समय कहा था कि उन्हें इस मामले में निर्देश लेने की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 03 मई 2023 को भी दया याचिका पर फैसला करने में 10 साल से अधिक की अत्यधिक देरी के कारण राजोआना की मौत की सजा को कम करने की याचिका को खारिज कर दी थी। उस समय न्यायालय ने कहा था कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है।
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 16 अन्य लोगों की 31 अगस्त 1995 को एक बम विस्फोट में मृत्यु हो गई थी। इस घटना में कई अन्य घायल हुए थे। इस मामले में राजोआना को 27 जनवरी 1996 को गिरफ्तार किया गया था।
इसके बाद जिला अदालत ने 27 जुलाई 2007 को राजोआना के साथ-साथ सह-आरोपी जगतार सिंह हवारा, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह और नसीब सिंह को दोषी ठहराया था। याचिकाकर्ता के साथ-साथ सह-आरोपी जगतार सिंह हवारा को मौत की सजा सुनाई गई थी।
फिर उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर 2010 को याचिकाकर्ता की दोषी बताते हुए सजा की पुष्टि की थी।उच्च न्यायालय ने हालांकि, जगतार सिंह की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।...////...