07-Nov-2024 11:40 PM
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नयी दिल्ली, 07 नवंबर (संवाददाता) भारत की वर्तमान जलवायु नीतियां न केवल दीर्घकालिक उत्सर्जन वक्र को झुकाने में मदद कर रही हैं, बल्कि इनसे 2020-2030 के बीच कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 4 अरब टन कमी आने का अनुमान है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि भारत ने ग्लासगो में आयोजित कॉप26 में 2030 तक उत्सर्जन में 1 अरब टन कार्बन डाइ ऑक्साइड कमी लाने का वादा किया था।
ये जानकारी पॉलिसी रिसर्च थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक नए स्वतंत्र अध्ययन ‘इम्पैक्ट ऑफ सेलेक्ट क्लाइमेट पॉलिसीज ऑन इंडियाज इमीशंस पाथवे’ से सामने आई है। इसमें पाया गया है कि भारत के ऊर्जा, आवासीय और परिवहन क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली नीतियों ने 2015 से 2020 के बीच 440 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पहले ही बचा चुकी हैं। यह 2023 में यूरोपीय यूनियन के कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन का लगभग 1.6 गुना है।
नीतिगत हस्तक्षेप के कारण कार्बन उत्सर्जन में सर्वाधिक गिरावट भारत के उर्जा क्षेत्र में देखी गई है, जिसकी अन्य क्षेत्रों की तुलना में देश के कार्बन उत्सर्जन में हिस्सेदारी काफी अधिक है। भारत को 2070 तक अपने नेट-जीरो लक्ष्य को पाने के लिए, भारत को आगामी दशकों में कार्बन उत्सर्जन को घटाने के प्रयासों को बढ़ाना होगा और अग्रणी जलवायु नीतियों को समर्थन देते रहना होगा।
सीईईडब्ल्यू का अपनी तरह का पहला मॉडल आधारित यह आकलन दर्शाता है कि कैसे भारत की जलवायु नीतियां एकीकृत रूप से उत्सर्जन घटाने और भारत के ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा के हिस्से को विस्तार देने, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तेजी लाने और घरेलू एयर कंडीशनिंग व प्रकाश व्यवस्था में ऊर्जा दक्षता को सुधारने का प्रयास कर रही हैं। यह मॉडल इसकी भी पड़ताल करता है कि कैसे राष्ट्रीय सौर मिशन, फेम I और II योजनाएं, स्टैंडर्ड एंड लेबलिंग योजना और उजाला योजना जैसी भारत की नीतियां भविष्य में ऊर्जा मांग व आपूर्ति को प्रभावित करती रहेंगी।
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के अनुसार, अक्षय ऊर्जा को प्रोस्ताहन देने वाली नीतियों से अकेले बिजली क्षेत्र में 2030 तक कोयला आधारित बिजली उत्पादन 24 प्रतिशत तक घटने, बिना किसी नीति वाले परिदृश्य की तुलना में, का अनुमान है। यह भारत की बढ़ती बिजली मांग को पूरा करने के लिए 80 गीगावॉट कोयला आधारित बिजली पॉवर प्लांट नहीं लगाने के बराबर है। वर्तमान में भारत में स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता (बड़े पन बिजली को छोड़कर) लगभग 155 गीगावॉट है। रणनीतिक समर्थन और निविदाओं के साथ, भारत के ऊर्जा मिश्रण (एनर्जी मिक्स) में संयुक्त रूप से सौर और पवन ऊर्जा का हिस्सा 2030 तक 26 प्रतिशत और 2050 तक 43 प्रतिशत पहुंच जाने का अनुमान है, जो 2015 में लगभग तीन प्रतिशत था। यह निश्चित रूप से कोयले पर निर्भरता घटाएगा, जिसका अभी देश के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हिस्सा लगभग आधा है। भारत के उत्सर्जन वक्र को नीचे की ओर झुकाने के लिए यह बदलाव अति-महत्वपूर्ण है। हालांकि, 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए और अधिक महत्वाकांक्षी कदम उठाने की जरूरत होगी।
डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “भारत की जलवायु नीतियों ने एक मजबूत आधार तैयार किया है, लेकिन 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए और भी अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और नवाचार की जरूरत होगी। हमें उन्नत स्वच्छ तकनीकों में निवेश को प्राथमिकता देने, ऊर्जा प्रबंधन को मजबूत करने और सुव्यवस्थित कार्बन मार्कट्स को लागू करना चाहिए। यह सिर्फ उत्सर्जन घटाने के लिए नहीं है, बल्कि यह भारत के ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित बनाने और जलवायु कार्रवाई में एक वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए है। व्यापक चुनौतियों का सामना करने के लिए निरंतर नवाचार और नीतियों में उचित बदलावों से हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत न केवल अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करे, बल्कि वैश्विक जलवायु नेतृत्व को भी आगे बढ़ाए।"
परिवहन क्षेत्र में, सीईईडब्ल्यू अध्ययन ने पाया है कि फेम (2015-2022) योजना जैसी नीतियों ने इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में सशक्त वृद्धि के लिए मंच तैयार किया है। अनुमान बताते हैं कि 2030 तक इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों और चार पहिया वाहनों की बिक्री अपनी-अपनी श्रेणियों में कुल वाहन बिक्री के 19 और 11 प्रतिशत पहुंच सकती है, जिससे तेल व गैस की मांग में 13 प्रतिशत की कमी आएगी। 2050 तक, इन आंकड़ों में नाटकीय रूप से वृद्धि होने की उम्मीद है, दोनों ही श्रेणियों का हिस्सा 65 प्रतिशत से ऊपर पहुंच सकता है। इसके परिणामस्वरूप परिवहन क्षेत्र में तेल और गैस की मांग 55 प्रतिशत की कमी, बगैर किसी नीति के परिदृश्य की तुलना में, आएगी।
आवासीय क्षेत्र में, 2006 स्टैंडर्ड और लेबलिंग कार्यक्रम ने एयर कंडीशनिंग और कूलिंग में ऊर्जा दक्षता में महत्वपूर्ण सुधार किया है। सीईईडब्ल्यू अध्ययन में सामने आया है कि भारतीय घरों में एयर कंडीशनिंग से जुड़ी बिजली की खपत 2020 से 2030 के बीच दोगुनी होने का अनुमान है, और 2050 तक यह लगभग 10 गुना बढ़ जाएगी। यह वृद्धि न सिर्फ अधिक गर्मी पड़ने और उच्च आय, बल्कि अक्षय ऊर्जा के उच्च विस्तार की पृष्ठभूमि में कम बिजली कीमत के कारण भी होगी। इस दौरान, 2015 से ऊर्जा-कुशल एलईडी बल्बों को प्रोत्साहन और 36.70 करोड़ से अधिक बल्बों का वितरण करने वाले उजाला कार्यक्रम से 2030 तक घरेलू प्रकाश व्यवस्था में बिजली के इस्तेमाल में 48 प्रतिशत और 2050 तक 59 प्रतिशत की कमी, बिना किसी नीति के परिदृश्य की तुलना में, लाने का अनुमान है। ऊर्जा-कुशल उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ाने वाले रिबाउंड इफेफ्ट के बावजूद, बिजली की कुल बचत कम ऊर्जा के साथ अधिक आबादी तक बिजली आपूर्ति करने की सुविधा देती है।
मौजूदा नीतियों को विस्तार देने के महत्व पर जोर देते हुए, डॉ. वैभव चतुर्वेदी, सीनियर फेलो, सीईईडब्ल्यू ने कहा, “हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि मौजूदा नीतियों ने भारत को सही रास्ते पर ला दिया है। वर्तमान नीतियों के आधार पर तैयार होने वाली नई नीतियां पहले से ही 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के प्रयास तेज करने के उद्देश्य से विकसित की जा रही हैं। तत्काल उठाए जाने वाले कदमों में अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने, घरेलू कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को विस्तार देने, और उद्योग, परिवहन व भवन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता सुधारने पर ध्यान देने को शामिल करना चाहिए। हालिया घोषित पीएम-ईड्राइव योजना फेम पहल से मिले लाभों को आगे बढ़ाएगी, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तेजी लाएगी और परिवहन क्षेत्र में ज्यादा गहराई से उत्सर्जन कटौती को निर्देशित करेगी। ये कदम भारत के उत्सर्जन वक्र (इमीशंस कर्व) को नेट-जीरो लक्ष्य की दिशा में निर्णायक रूप से झुकाने में सहायक होंगे।”
भारत को निश्चित तौर पर अपनी जलवायु रणनीतियों को लगातार सुधारना चाहिए, नई पीढ़ी की स्वच्छ तकनीकों को लगाने में तेजी लानी चाहिए, और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के लिए सशक्त फ्रेमवर्क (रूपरेखा) स्थापित करनी चाहिए।
सीईईडब्ल्यू विश्लेषण ने भारत के औद्योगिक ऊर्जा दक्षता उपयोग पर सरकार की ‘परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड’ (पीएटी) योजना के प्रभावों पर विचार नहीं किया है। पहले के अध्ययनों में पाया गया है कि उत्सर्जन घटाने पर इसका सीमांत प्रभाव है। इन विश्लेषण ने कुछ हालिया नीतियों - जैसे राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, पीएम सूर्यघर योजना और पीएम-ईबस सेवा योजना - को भी शामिल नहीं किया है, इनके प्रभावों का आकलन करने के लिए ये नीतियां अभी नई हैं। ये नीतियां भारत के भविष्य के कार्बन उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करेंगी और इनका आकलन उचित समय पर किया जायेगा।...////...