भारत ने अतिवाद नहीं, मध्यमार्ग दिखा कर दुनिया को सम्यक जीवन का उपहार दिया: मनोज सिन्हा
27-Dec-2024 10:15 PM 3682
नयी दिल्ली 27 दिसंबर (संवाददाता) जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने आज कहा कि भारत कभी अतिवाद की गिरफ्त में नहीं रहा है और यहां आध्यात्मिक ज्ञान से भौतिक इच्छाओं एवं आकांक्षाओं पर संतुलन साधा गया है और यहीं से विश्व को सम्यक जीवन जीते हुए ऐश्वर्य एवं समृद्धि के लिए सन्मार्ग पर चलने के दर्शन का उपहार मिला है। श्री सिन्हा ने शुक्रवार को शाम यहां साहित्यकार, दार्शनिक, राजनेता एवं सांसद रहे स्वर्गीय डॉ. शंकरदयाल सिंह की जन्मजयंती के मौके पर शंकर संस्कृति प्रतिष्ठान के तत्त्वाधान में आयोजित “हमारी जरूरतें और चाहतें” विषय पर एक व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य अतिथि यह बात कही। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने प्रेरक उद्बोधन प्रदान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रंजन कुमार सिंह ने की। स्वर्गीय शंकरदयाल सिंह की पुत्री भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी श्रीमती रश्मि सिंह ने कार्यक्रम का प्रबंध संचालन किया। श्री सिन्हा ने स्वर्गीय शंकरदयाल सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह एक संत साहित्यकार, राजनेता, प्रखर राष्ट्रवादी और ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे जिनमें देश के प्राचीन गौरव को पुन: हासिल करने की आकांक्षा थी और उन्हें सृष्टि के प्रति अपने कर्त्तव्य का बोध था और उनका मानना था कि यदि इस कर्त्तव्य के प्रति हमारी सभ्यता में यह बोध ना होता तो भारत की सभ्यता इतनी विकसित कभी नहीं होती और ना ही तमाम विरोधाभासों एवं टकरावों के बावजूद जीवंत होती। उन्होंने कहा कि भारत एक समय ज्ञान एवं उद्योग दोनों का बड़ा केन्द्र था। अन्य देशों से लोग केवल व्यापार के लिए नहीं बल्कि शिक्षा एवं अध्यात्म के लिए भी आते थे। ऐश्वर्य एवं समृद्धि के लिए सन्मार्ग पर चलें, ऐसा भारत की भूमि ने ही सिखाया है। हमारे वैज्ञानिक आध्यात्मिक चिंतन के साथ ऋषि ही थे। उनके अंतरतम में भौतिकता नहीं थी। भारत ने दुनिया को सम्यक जीवन का बहुत बड़ा उपहार दिया है। उपराज्यपाल ने कहा कि भारत कभी भी अतिवाद की गिरफ्त में नहीं रहा है। भारत ने संतुलित जीवन की राह दिखायी है। सन्यास की अति और ऐश्वर्य की अति, दोनों ही बुरी हैं। इनका मध्य मार्ग में ही जीवन का सुख और आनंद है। आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के बीच की जद्दोजेहद में हमारी परंपराओं एवं संस्कारों का प्रभाव बना रहा। इसी से सतत विकास एवं टिकाऊ जीवनशैली के सिद्धांत बने हैं। यह वो थाती है जिसे हमने अपने पूर्वजों से पाया है। अशांति के इस युग में हमारे महान पूर्वजों की शिक्षाएं हमें मार्ग दिखा रहीं हैं। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भारत ही नहीं अपितु वैश्विक समाज में अशांति एवं असंतोष के कारणों का उल्लेख किया और कहा कि यह युग कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का है लेकिन हमें आरआई यानी ऋषि बुद्धिमत्ता की ओर जाना होगा। उन्होंने इंटरनेट एवं मोबाइल काे सामाजिक ताने बाने एवं पारिवारिक संबंधों का सबसे बड़ा शत्रु बताते हुए कहा कि पहले लोगों को सोमवार मंगलवार गुरुवार आदि के व्रत रखने के लिए कहा जाता है और आज हमें मोबाइल व्रत धारण करने की जरूरत है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में 18 साल से कम आयु के लोगों और फ्रांस में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए मोबाइल के उपयोग पर रोक लगाये जाने का उल्लेख किया और कहा कि बच्चों को फेसबुक की बजाय उनके फेस पर बुक्स लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अध्ययन, चिंतन, मनन की आदत मोबाइल इंटरनेट के कारण समाप्त हो रही है। लोग हो सकता है कि बहुत पैसा कमा लें लेकिन उनकी आत्मा एवं अंतरतम खाली और खोखला ही रह जाएगा। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि लोगों की चाहतें बढ़तीं जा रहीं हैं और चैन खोता जा रहा है। परिवारों में अहंकार की बाधाएं खड़ी हो रहीं हैं। पैसा बहुत हुआ लेकिन भीतर की शांति नहीं है तो क्या हुआ। उन्होंने कहा कि भारत में उसी को जीवित कहा गया है जिसकी कीर्ति जीवित है। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों को अध्यात्म से उन्हीं की भाषा में जोड़ना होगा। सतत विकास अध्यात्म के बिना नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत किसी तलवार की ताकत पर नहीं खड़ा है। यह ऋषि बुद्धिमत्ता यानी आरआई के कारण संस्कृति एवं संस्कार की ताकत पर खड़ा है। हमारे बच्चों को समझाना होगा -‘लिविंग विद लेस एंड बी मोर’ तथा ‘नॉट फॉर मी, बट थ्रू मी’। इस मौके पर दिवंगत राजनेता के कृतित्व पर एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया।...////...
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