07-Jul-2024 08:50 PM
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पुरी, 07 जुलाई (संवाददाता) ओडिशा की इस तीर्थ नगरी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन भगवान बलवद्र और देवी सुभद्रा की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा देखने के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़े।
बारहवीं शताब्दी के मंदिर और तीन किलोमीटर लंबी भव्य सड़क के चारों ओर ‘जय जगन्नाथ’, ‘हरोबोल’ के नारे और झांझ की ध्वनि गूंज उठी। मंदिर के सेवकों - दैतापतियों द्वारा अपने-अपने रथों को मंदिर के गर्भगृह से जोड़कर देवताओं को ‘रत्न सिंहासन’ से बाहर निकाले जाने के कारण इसे ‘बड़ा डंडा’ के नाम से जाना जाता है।
इस बार लगभग 53 वर्षों के अंतराल के बाद, नेत्र उस्तव, देवताओं के नबजौबन दर्शन और रथ यात्रा जैसे अनुष्ठान सात जुलाई को एक ही दिन में किए गए।
चूंकि सभी तीन प्रमुख अनुष्ठान रविवार को एक ही दिन में किए गए है इसलिए सड़क पर कुछ मीटर नीचे लुढ़कने के बाद रथों को खींचने की प्रक्रिया निलंबित होने की पूरी संभावना है। यात्रा सोमवार सुबह अपने अंतिम गंतव्य जगन्नाथ मंदिर से तीन किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर के लिए फिर से शुरू होगी।
मंदिर के सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु न केवल रथ यात्रा के दौरान मौजूद रहेगी बल्कि रथ भी खींचेंगी।
सेवकों ने सुबह-सुबह देवताओं को ‘गोपाल भोग’ (नाश्ता) चढ़ाया, जिसके बाद उन्हें ‘रत्नवेदी’ से एक औपचारिक 'पहांडी बिजे' में मंदिर के बाहर खड़े उनके संबंधित सुसज्जित रथों पर ले जाया गया।
मंदिर के सैकड़ों सेवक शंख ध्वनि के बीच देवताओं को अपने कंधों पर उठाकर आनंद बाजार और ‘बैशी पहाचा’ (मंदिर की बाईस सीढ़ियाँ) से होते हुए मंदिर से लायंस गेट तक ले गए।
इस दौरान सोलह पहियों वाला भगवान जगन्नाथ का लाल रथ और पीला ‘नंदीघोष’, 14 पहियों वाला बलभद्र का लाल और हरा ‘तालध्वज’ और एक दर्जन पहियों वाला देवी सुभद्रा का लाल और काला ‘देवदलन’, मंदिर के मुख्य दरवाजे के बाहर पंक्तिबद्ध खड़े रहे।
परम्परा के अनुसार भगवान बलवद्र को सबसे पहले ‘रत्न वेदी’ से बाहर निकाला गया और औपचारिक ‘पहांदी बिजे’ के माध्यम से तालध्वज नामक रथ में स्थापित किया गया। उसके बाद देवी सुभद्रा को ‘दर्पदलन रथ’ पर स्थापित किया गया। अंत में भगवान जगन्नाथ जिन्हें लाखों भक्त प्यार से ‘कालिया’ भी कहते हैं, को ‘नंदीघोष’ रथ में स्थापित किया गया।...////...