द इकोनॉमिस्ट के निष्कर्ष को सरकार ने किया खारिज
06-Jan-2024 07:08 PM 5367
नयी दिल्ली, 06 जनवरी (संवाददाता) सरकार ने ब्रिटेन के साप्ताहिक पत्र ‘द इकोनॉमिस्ट’की एक ताजा रपट में भारत में मेट्रो रेल प्रणाली में यात्री संख्या बढ़ाने के लक्ष्य पूरा न होने के निष्कर्ष को खारिज किया है और कहा है कि नयी प्रणाली होने के बाजूद देश में मेट्रो रेलों में यात्रा करने वालों का आंकड़ा दैनिक एक करोड़ से ऊपर पहुंच गया है और निकट भविष्य में यह सवा गुना हो जाएगा। आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने शनिवार को इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट की कमियां गिनाते हुए एक बयान में कहा, “ इस लेख का केंद्रीय बिंदु यह है कि भारत की किसी भी मेट्रो रेल प्रणाली ने अपनी अनुमानित यात्री संख्या का आधा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाई है। लेकिन ऐसा बताते हुये, इस तथ्य की अनदेखी कर दी गई है कि भारत के वर्तमान मेट्रो रेल नेटवर्क के तीन-चौथाई से अधिक हिस्से की कल्पना और उसका निर्माण एवं संचालन 10 साल से भी कम समय पहले शुरू किया गया है। ” मंत्रालय ने कहा कि देश में कई मेट्रो रेल प्रणालियां तो अभी कुछ ही वर्ष पहले चालू हुयी हैं। फिर भी, देश की सभी मेट्रो प्रणालियों में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही एक करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है और अगले एक या दो वर्षों में इसके 1.25 करोड़ से से अधिक हो जाने की उम्मीद है। मंत्रालय का दावा है कि भारत में मेट्रो यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी जा रही है और जैसे-जैसे हमारी मेट्रो प्रणाली विकसित होगी, यह संख्या बढ़ती जायेगी। यह भी गौर दिया जाना चाहिये कि देश की लगभग सभी मेट्रो रेल प्रणालियां वर्तमान में परिचालन लाभ अर्जित कर रही हैं। बयान में कहा गया है कि इकोनॉमिस्ट की 23 दिसंबर, 2023 के ‘क्रिसमस डबल’ शीर्षक वाले अंक में भारत की मेट्रो रेल प्रणालियों के बारे में एक लेख में इस तथ्य की गलत व्याख्या की है कि “भारत की विशाल मेट्रो व्यवस्था पर्याप्त संख्या में यात्रियों को आकर्षित करने में विफल हो रही है”। इस लेख में तथ्यात्मक अशुद्धियां होने के साथ-साथ वैसे आवश्यक संदर्भ भी अनुपस्थित हैं जिसके आधार पर भारत के बढ़ते मेट्रो रेल नेटवर्क का अध्ययन किया जाना चाहिये। मंत्रालय ने कहा है कि दिल्ली मेट्रो जैसी एक परिपक्व मेट्रो प्रणाली में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही 70 लाख से ऊपर पहुंच गयी है। यह आंकड़ा 2023 के अंत तक के लिये अनुमानित संख्या से कहीं अधिक है। डीएमआरसी बहुत अधिक भीड़भाड़ वाले घंटों (पीक-आवर) और भीड़भाड़ वाली दिशा (पीक-डायरेक्शन) में यातायात के क्रम में 50,000 से अधिक लोगों को सेवा प्रदान करता है। इस मांग को पूरा करने के लिये ऐसे गलियारों में एक घंटे के भीतर 715 बसों को एक ही दिशा में यात्रा करने की आवश्यकता होगी जिसका अर्थ है कि प्रत्येक बस के बीच लगभग पांच सेकंड का अंतर। यह एक असंभव परिदृश्य है। मंत्रालय ने कहा है कि सरकार भारत में लोगों को आरामदायक, भरोसेमंद और ऊर्जा में मामले में किफायती आवागमन की ऐसी सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने हाल ही में बस परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु पीएम ई-बस सेवा योजना शुरू की है, जिसमें 5 लाख से 40 लाख के बीच की आबादी वाले शहरों में 10,000 ई-बसें तैनात की जायेंगी। चार मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए बस परिवहन से जुड़े उपाय पहले से ही सरकार की ‘फेम’ योजना में शामिल हैं। मंत्रालय ने इस लेख में इस बात को कि छोटी यात्रायें करने वाले यात्री परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करना पसंद करते हैं और इससे यह संकेत मिलता है कि “महंगे परिवहन वाला बुनियादी ढांचा” समाज के सभी वर्गों की सेवा नहीं कर रहा है। मंत्रालय का कहना है कि इस कथन में फिर से संदर्भ का अभाव है क्योंकि यह इस तथ्य की व्याख्या कर पाने में विफल है कि भारतीय शहरों का विस्तार हो रहा है। 20 साल से अधिक पुरानी डीएमआरसी मेट्रो प्रणाली की औसत यात्रा लंबाई 18 किलोमीटर की है। भारत की मेट्रो प्रणालियां, जिनमें से अधिकांश पांच या 10 वर्ष से कम पुरानी हैं, अगले 100 वर्षों के लिए भारत के शहरी क्षेत्रों की यातायात संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से योजनाबद्ध और संचालित की गई हैं। साक्ष्य पहले से ही इस तथ्य की पुष्टि कर चुके हैं कि मेट्रो रेल प्रणाली महिलाओं और शहरी युवा वर्ग के लिये यात्रा का सबसे पसंदीदा साधन है।...////...
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