28-May-2025 08:41 PM
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नयी दिल्ली, 28 मई (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधिकारियों को अदालत से अनुमति लिए बिना भौगोलिक रूप से संवेदनशील दिल्ली रिज क्षेत्र में अवैध रूप से सैंकड़ों पेड़ों की कटाई के मामले में जमकर फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की अंशकालिक कार्य दिवस पीठ ने कहा कि डीडीए अधिकारियों का आचरण आपराधिक अवमानना के बराबर है। यह संस्थागत गलतियों और प्रशासनिक अतिक्रमण का क्लासिक मामला है।
न्यायालय ने न्यायपालिका से पेड़ों की कटाई को जानबूझकर और जानबूझकर छिपाने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “एक राष्ट्र के रूप में जो कानून के शासन में निहित है, न्यायपालिका पर बहुत भरोसा किया जाता है ... जब जानबूझकर अवहेलना की जाती है, तो न्यायालय को सख्त रुख अपनाना चाहिए।”
पीठ ने कहा, “प्रतिवादियों का आचरण अवमाननापूर्ण रहा है। उनके कृत्य आपराधिक अवमानना के दायरे में आते हैं।”
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जब मामला उसके पास पहुंचा तब तक पेड़ों की कटाई हो चुकी थी और इस जानबूझकर गैर-प्रकटीकरण ने न्यायिक प्रक्रिया के मूल पर प्रहार किया।
अदालत ने भविष्य में इसी तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अनिवार्य किया कि वन के विकास, सड़क निर्माण या किसी भी पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील गतिविधि से संबंधित सभी अधिसूचनाओं या आदेशों में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के लंबित होने का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए है कि कानूनी कार्यवाही की अज्ञानता को भविष्य के उल्लंघनों में ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाए।
न्यायालय ने डीडीए के पूर्व उपाध्यक्ष सुभाशीष पांडा के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी। श्री पांडा अब डीडीए में नहीं हैं।
अदालत ने हालांकि अन्य दोषी अधिकारी पर 25-25 हजार रुपये का पर्यावरण मुआवजा लगाया। इसके अलावा उन दोषी अधिकारियों पर कोई भी विभागीय कार्रवाई भी की जा सकती है। न्यायालय ने उनके खिलाफ औपचारिक निंदा भी जारी की।
पीठ ने निर्माणाधीन केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल आयुर्विज्ञान संस्थान अस्पताल तक जाने वाली सड़क को चौड़ा करने के महत्व को स्वीकार किया। पीठ ने कहा कि सार्वजनिक हित बुनियादी ढांचे की जरूरतों को सही ठहरा सकते हैं, लेकिन यह कानूनी अनिवार्यता या पारिस्थितिक जिम्मेदारी को खत्म नहीं कर सकते।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति कांत ने कहा, “गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करना एक विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि एक आवश्यकता है। सार्वजनिक हित हमारे लिए बहुत मायने रखता है।”
न्यायालय ने डीडीए और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को तत्काल सुधारात्मक उपाय करने का निर्देश दिया।
न्यायालय द्वारा गठित एक समिति इस प्रक्रिया की देखरेख करेगी, जिसमें वन की भरपाई के लिए 185 एकड़ भूमि की पहचान, समिति की देखरेख में वन विभाग द्वारा वनीकरण योजना तैयार करना तथा कार्यान्वयन, वन क्षेत्रों के रखरखाव पर डीडीए और वन विभाग द्वारा एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करना, दिल्ली के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त उपाय शामिल हैं।
दक्षिणी दिल्ली स्थित मुख्य छतरपुर रोड और संबंधित अस्पताल के बीच सड़क निर्माण के लिए दिल्ली रिज क्षेत्र में पेड़ों की कटाई के संबंध में शीर्ष अदालत की विभिन्न पीठों के समक्ष समानांतर कार्यवाही से अवमानना का मामला सामने आया।
शुरू में एमसी मेहता मामले में न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ और टी एन गोदावर्मन मामले में न्यायमूर्ति बी आर गवई (अब मुख्य न्यायाधीश) की पीठ ने मामलों की सुनवाई की।
न्यायमूर्ति ए एस ओका (अबसेवानिवृत्त) की पीठ ने दिल्ली उप राज्यपाल वी के सक्सेना को अवमानना नोटिस जारी करने की चेतावनी दी थी। श्री सक्सेना डीडीए के अध्यक्ष हैं।
न्यायालय ने कहा कि पेड़ काटना छतरपुर फार्महाउस क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण की बाधाओं को दरकिनार करने का एक प्रयास प्रतीत होता है
अंतिम फैसला न्यायमूर्ति सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया, जिसने पिछली कार्यवाही से स्वतंत्र होकर एक नया दृष्टिकोण अपनाया।
शीर्ष न्यायालय ने 21 जनवरी को वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन और अन्य वकीलों की व्यापक सुनवाई और प्रस्तुतियों के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटाई को स्वीकार करते हुए जोर देकर कहा कि अदालती आदेशों की पवित्रता को बनाए रखने के लिए न्यायिक आदेशों के उल्लंघन को दृढ़ता से पालन किया जाना चाहिए।...////...