13-Jan-2023 10:48 PM
5110
नयी दिल्ली 13 जनवरी (संवाददाता) भारत ने वैश्विक दक्षिण देशों के लिए एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहल स्थापित करने तथा वैश्विक दक्षिण में किसी भी मानवीय संकट या प्राकृतिक आपदा में चिकित्सीय सहायता के आरोग्य मैत्री पहल स्थापित करने की घोषणा की। भारत युवा राजनयिकों के लिए ग्लोबल-साउथ यंग डिप्लोमैट्स फोरम और छात्रों के लिए ग्लोबल-साउथ स्कॉलरशिप भी शुरू करेगा।
मानव केन्द्रित विकास की थीम पर आधारित वैश्विक दक्षिण के 125 देशों का प्रथम दि वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन विकासशील देशों की आकांक्षाओं, प्राथमिकताओं, हितों एवं चुनौतियों को विश्व मंच पर एक प्रभावी आवाज़ एवं सशक्त उद्देश्य प्रदान करने के साथ संपन्न हो गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समापन सत्र में अपनी समापन टिप्पणी में कहा कि सम्मेलन में आठ सत्रों में मंथन से प्रकट हुए उनके विचार भारत को जी-20 के एजेंडा तैयार करने में प्रेरणास्रोत बनेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 3 साल कठिन रहे हैं, खासकर हम विकासशील देशों के लिए। कोविड महामारी की चुनौतियों, ईंधन, उर्वरक और खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने हमारे विकास प्रयासों को प्रभावित किया है। हालाँकि, नए साल की शुरुआत एक नई आशा का समय है।
उन्होंने कहा, “हम सभी वैश्वीकरण के सिद्धांत की सराहना करते हैं। भारत के दर्शन ने हमेशा दुनिया को एक परिवार के रूप में देखा है। हालाँकि, विकासशील देश एक ऐसे वैश्वीकरण की इच्छा रखते हैं जो जलवायु संकट या ऋण संकट पैदा न करे। हम एक ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं जो टीकों के असमान वितरण या अति-केन्द्रित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की ओर न ले जाए तथा जो संपूर्ण मानवता के लिए समृद्धि और कल्याण लाए। संक्षेप में हम ‘मानव-केन्द्रित वैश्वीकरण’ चाहते हैं।”
श्री मोदी ने कहा कि विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में बढ़ते टकरावों को लेकर भी चिंतित हैं। ये भू-राजनीतिक तनाव विकास प्राथमिकताओं से हमारा ध्यान खींचते हैं और भोजन, ईंधन, उर्वरक एवं अन्य वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव का कारण बनते हैं। इस भू-राजनीतिक विखंडन को दूर करने के लिए, हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और ब्रेटन वुड्स संस्थानों सहित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों में तत्काल एक मौलिक सुधार की आवश्यकता है। इन सुधारों को विकासशील देशों की चिंताओं को आवाज देने पर ध्यान देना चाहिए और 21वीं सदी की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता, इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर वैश्विक दक्षिण के विचारों को आवाज देने का प्रयास करेगी।
प्रधानमंत्री ने वैश्विक दक्षिण के देशों को एक-दूसरे के विकास के अनुभवों से सीखने की जरूरत पर बल देते हुए घोषणा की कि भारत ‘ग्लोबल-साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ स्थापित करेगा जो किसी भी देश के विकास समाधानों या सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों पर शोध करेगा जिसे वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों में लागू किया जा सके। उन्होंने उदाहरण दिया कि भारत द्वारा इलेक्ट्रॉनिक भुगतान, स्वास्थ्य, शिक्षा, या ई-गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों में विकसित डिजिटल सार्वजनिक सामान, कई अन्य विकासशील देशों के लिए उपयोगी हो सकता है। इसी प्रकार से भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी काफी प्रगति की है। हम अन्य विकासशील देशों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा करने के लिए ‘ग्लोबल साउथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल’ शुरू करेंगे।
श्री मोदी ने कोविड महामारी के दौरान, भारत की 'वैक्सीन मैत्री' पहल के तहत 100 से अधिक देशों को भारत में निर्मित टीकों की आपूर्ति के बारे में बताते हुए कहा, “मैं अब एक नई 'आरोग्य मैत्री' परियोजना की घोषणा करना चाहता हूं। इस परियोजना के तहत, भारत प्राकृतिक आपदाओं या मानवीय संकट से प्रभावित किसी भी विकासशील देश को आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करेगा।” उन्होंने वैश्विक दक्षिण देशों की कूटनीतिक आवाज में तालमेल बैठाने के लिए विदेश मंत्रालयों के युवा अधिकारियों को जोड़ने के लिए ‘ग्लोबल-साउथ यंग डिप्लोमैट्स फोरम’ का भी प्रस्ताव किया और कहा कि भारत विकासशील देशों के छात्रों के लिए भारत में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए 'ग्लोबल-साउथ स्कॉलरशिप' भी शुरू करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा, “आज के सत्र का विषय भारत के प्राचीन विवेक से प्रेरित है। ऋग्वेद से एक प्रार्थना - मानवता के लिए ज्ञात सबसे पुराना पाठ - कहता है: संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् जिसका अर्थ है: आइए हम एक साथ आएं, एक साथ बोलें, और हमारे मन सद्भाव से भरे हों। या दूसरे शब्दों में कहें तो ‘आवाज की एकता, उद्देश्य की एकता’।
उन्होंने कहा कि हम सब दक्षिण दक्षिण सहयोग की महत्ता को लेकर सहमत हैं और यह सामूहिक रूप से वैश्विक एजेंडा को आकार दे रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में पारंपरिक औषधियां, स्वास्थ्य को लेकर क्षेत्रीय हब के विकास एवं स्वास्थ्य पेशेवरों के आसान आवागमन के साथ ही डिजीटल उपचार की उपलब्धता हो या शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण, सुदूरशिक्षण में प्रौद्योगिकी के उपयोग। बैंकिंग क्षेत्र में डिजीटल तकनीक से सार्वजनिक भलाई हो या आर्थिक समावेशन बढ़ाना, भारत के अनुभव पैमाने एवं गति दोनों कसौटियों पर खरे हैं।
उन्होंने कहा कि विकासशील देश इस बात को लेकर एकमत हैं कि विकसित देशों ने जलवायु वित्तपोषण एवं प्रौद्याेगिकी को लेकर अपने दायित्व को नहीं निभाया। हम मानते हैं कि उत्पादन में उत्सर्जन को नियंत्रित रखने के साथ साथ एक बार उपभोग के बाद कचरे में फेंकने वाली जीवनशैली की बजाय पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाना बहुत अहम है। संसाधनों के विवेकपूर्ण उपभोग एवं पुनचक्रीय अर्थव्यवस्था पर भारत का फोकस इसी कारण से है।
विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने समापन सत्र के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दो दिन के वर्चुअल समिट की थीम एक आवाज़ एक उद्देश्य थी। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया जिसमें वित्त, पर्यावरण, विदेश, ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा मंत्रियों के कुल आठ सत्र आयोजित किये गये। सम्मेलन में कुल 125 देशों ने भाग लिया जिनमें 29 देश लैटिन अमेरिका से, 47 देश अफ्रीका से, 31 देश एशिया से सात देश यूरोप से और 11 देश ओसेनिया से शामिल हुए।
श्री क्वात्रा ने कहा कि यह सही मायने में वैश्विक दक्षिण शिखर सम्मेलन था। हम इन विकासशील देशों के निकट संपर्क में रहे हैं। उन्होंने जी-20 में इस सम्मेलन के प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की अध्यक्षता काल में समूचे विकासशील जगत की भावनाओं को इस सम्मेलन में समेटा गया है। सभी देशों ने इसका निमंत्रण स्वीकार किया। स्वास्थ्य, वित्त, तकनीक, विकासात्मक प्राथमिकताएं एवं वित्तीय समावेशन पर भारत के विचारों एवं अनुभवों की भूरि भूरि प्रशंसा की गयी। भारत ने ‘रिस्पॉन्ड, रिकॉग्नाइज़, रिस्पेक्ट एवं रिफार्म’के चार ‘आर’ के मंत्र को भी प्रतिपादित किया है।
एक सवाल के जवाब में विदेश सचिव ने बताया कि बैठक के बारे में जी-20 के सभी सदस्य देशों के साथ भारत ने बात की थी जिनमें चीन भी शामिल था। एक प्रश्न में उत्तर में उन्होंने यह भी कहा कि वित्त मंत्रियों की बैठक में सभी देशों ने विकास के लिए वित्तपोषण के तौर तरीकों को लेकर भी चर्चा की और ऋण का भार भी एक महत्वपूर्ण विषय था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद तथा खाद्यान्न, ऊर्जा एवं उवर्रक की कीमतों को लेकर भी महत्वपूर्ण विचार विमर्श हुआ। उन्होंने कहा कि द्वीपीय देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण उनके अस्तित्व पर संकट को लेकर भी अपने विचार व्यक्त किये।...////...