06-Jan-2022 05:30 PM
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उरई, 06 जनवरी (AGENCY) उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में जालौन लोकसभा क्षेत्र में अपनी पार्टी की जमीन तलाशने की कोशिशों मेेें लगे समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव के प्रयासों के बावजूद यहां की तीनों सीटों जालौन-उरई, कालपी और माधौगढ़ सीटों पर मुख्य टक्कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच ही होने की संभावना है।
जालौन लोकसभा क्षेत्र की महत्वपूर्ण माधौगढ़ विधानसभा सीट का स्वरूप आजादी के बाद अब तक हुए चुनावों में चार बार बदल चुका है। यह जिले की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा से हरिओम उपाध्याय चुनाव लड़े थे जिनको 51135 मत मिले थे और चुनाव जीते थे। दूसरे नंबर पर भाजपा के संतराम सिंह रहे थे जिनको 47833 मत प्राप्त हुए थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा से संतराम कुशवाहा ने यहां जीत हासिल की थी और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से मूलचंद निरंजन ने इस सीट पर विजय पताका लहरायी थी।
वर्ष 2012 में नये परिसीमन के तहत कोंच (सु.) विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म होने के बाद उरई सीट आरक्षित हो गई। यहां से सर्वाधिक चार बार कांग्रेस के पं. चतुर्भुज शर्मा विधायक निर्वाचित हुए। वर्ष 2012 के चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित हो गई। इस चुनाव में पहली बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी दयाशंकर वर्मा ने इस सीट पर जीत हासिल कर खाता खोला लेकिन 2017 में भाजपा के गौरीशंकर वर्मा ने यहां रिकॉर्ड जीत हासिल की। सपा के महेंद्र सिंह को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था।
जालौन की कालपी विधानसभा को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है। कालपी का अपना एक विशेष महत्व है। इस नगर में हिन्दू-मुस्लिम धर्मों की अनेक इबादतगाह हैं। अनगिनत मजार,मंदिर यहां मौजूद हैं। इस नगर के चप्पे-चप्पे पर इतिहास की अनेक कहानियां बसी हैं। कालपी विधानसभा सीट 1952 और 1957 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले और दूसरे आम चुनावों के समय अस्तित्व में नहीं थी, 1962 में इस निर्वाचन क्षेत्र का गठन हुआ। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा से छोटे सिंह चौहान ने यहां विजय हासिल की थी। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उमा कांति चुनाव लड़ी थीं जिनको 64289 मत मिले थे और चुनाव जीती थीं। वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर में यहाँ से भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र पाल सिंह जादौन बंपर वोटों से चुनाव जीते थे, वहीं दूसरे नंबर पर बसपा के छोटे सिंह चौहान रहे थे जिनको 54504 मत प्राप्त हुए थे।
जालौन विधानसभा क्षेत्र की तीनों सीटों की यदि बात की जाएं तो यहां समाजवादी पार्टी कभी कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा पायी है। यहां केवल जालौन-उरई सीट पर 2012 में पहली बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी दयाशंकर वर्मा ने विधानसभा सीट जीतकर खाता खोला था लेकिन 2017 में भाजपा ने इस सीट पर सपा के समीकरणें को उलटते हुए भगवा लहराया था। इस क्षेत्र के साथ साथ कमोबेश पूरे बुंदेलखंड में सपा का यही हाल रहा। बुंदेलखंड में समाजवादी कभी अपनी गहरी छाप नहीं छोड़ पाये। श्री अखिलेश यादव इस बार पूरे बुंदेलखंड के साथ जालौन विधानसभा सीट पर भी जोर आजमाइश कर रहे हैं लेकिन इसका प्रतिफल चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा।
विश्लेषकों के अनुसार इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच ही होता रहा है, यह क्षेत्र मुख्यत: इन्हीं दो पार्टियों का क्षेत्र है। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में जब समाजवादी पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में थी तब भी सपा यहां कोई कमाल नहीं कर पायी थी। श्री यादव ने उस समय बुंदेलखंड में पिछड़ों का जो वोट बैंक तैयार किया था उसमें पाल और कुशवाहा बिरादरी बेस वोट था, जो समाजवादी पार्टी के कमजोर होने के बाद बसपा की ओर जा चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच तीनों विधानसभा सीटों पर भगवा परचम लहराया था। भाजपा की जीत में इस वर्ग तथा अनुसूचित वर्ग के एक बड़े तबके का भी हाथ था लेकिन सत्ता में आने के बाद इन वर्गों को सरकार और महत्वपूर्ण पदों पर उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से इनके बीच नाराज़गी भी साफ दिखायी दे रही है। इसी तरह वैश्य समुदाय भी भाजपा पर सरकार में जरूरी प्रतिनिधित्व नहीं दिये जाने को लेकर अपने आक्रोश का इज़हार कर रहा है।
यह स्थितियां इस विधानसभा सीट पर भाजपा के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती है। इस बीच इस क्षेत्र की दो सीटों पर बसपा ने पाल और कुशवाहा कार्ड खेल दिया है। सपा ने कालपी से पाल बिरादरी और माधौगढ़ से कुशवाहा बिरादरी को टिकट दिया है। जालौन-उरई सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। ऐसे में भाजपा के लिए अगर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाये रखनी है तो पिछड़ों और अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी दूर करने के उपाय करने होंगे।...////...