कांग्रेस ने सत्ता बरकरार रखने के लिए एक साथ चुनाव कराने की नीति को खत्म कर दिया: अनिल एंटनी
08-Jun-2025 09:10 PM 2675
बेंगलुरु, 08 जून (संवाददाता) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अनिल के एंटनी ने रविवार को कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोलते हुए उस पर राजनीतिक लाभ के लिए एक साथ चुनाव कराने की भारत की सफल प्रणाली को समाप्त करने का आरोप लगाया। श्री एंटनी ने ‘राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल के लिए केंद्र के प्रयास का समर्थन करते हुए कहा कि यह प्रथा तब तक सुचारू रूप से चलती रही जब तक कि 1967 के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे बाधित नहीं कर दिया। उन्होंने यहां एक नीति मंच पर कहा, “1951 से 1967 तक भारत ने स्थिरता और सुशासन सुनिश्चित करते हुए लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए लेकिन जब श्रीमती इंदिरा गांधी सत्ता में आईं तो यह बदल गया। अगले तीन वर्षों में कई गैर-कांग्रेसी सरकारें बर्खास्त कर दी गईं और राजनीतिक जोड़-तोड़ के कारण समकालिक चुनाव चक्र ध्वस्त हो गया। 1970 के दशक के अंत तक यह प्रणाली पूरी तरह से पटरी से उतर गई थी।” इस व्यवधान को सत्ता बनाए रखने के लिए कांग्रेस द्वारा किया गया ‘स्वार्थपूर्ण कदम’ बताते हुए उन्होंने कहा कि दशकों से अव्यवस्थित चुनावों ने देश पर प्रशासनिक देरी, राजकोषीय तनाव और शासन की दक्षता में कमी का बोझ डाला है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की 2023 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें समकालिक चुनावों की जोरदार सिफारिश की गई थी। उन्होंने कहा “ रिपोर्ट के अनुसार, 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लागू करने से भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है जो 4-7 लाख करोड़ रुपये के बराबर है। यह हमारे स्वास्थ्य सेवा बजट का लगभग 50 प्रतिशत और हमारे शिक्षा बजट का एक तिहाई है।” भाजपा ने भारत के साल भर चलने वाले चुनाव चक्र के भारी नुकसान बताते हुए कहा “ पिछले 30 वर्षों में बिना चुनाव के एक भी साल नहीं बीता है। आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने के कारण हर साल लगभग पाँच महीने तक शासन ठप रहता है। राज्य और राष्ट्रीय नेता विकास पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय स्थायी अभियान मोड में रहते हैं।” उन्होंने कहा कि समन्वित चुनाव प्रणाली को बहाल करना कोई राजनीतिक कदम नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र-प्रथम सुधार है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है। उन्होंने कहा “ यह भाजपा के बारे में नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के तहत 1983 में भी चुनाव आयोग ने कहा था कि भारत को संयुक्त चुनावों की ओर लौटना चाहिए। श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी जैसे हमारे संस्थापक नेताओं ने 1980 के दशक में इस विचार का समर्थन किया था। यह स्थिरता वापस लाने के बारे में है।” वर्ष 2014 में दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के कगार पर भारत की तेजी से वृद्धि का हवाला देते हुए श्री एंटनी ने कहा कि इस विकास को बनाए रखने और तेज करने के लिए चुनावी सुधार आवश्यक हैं। उन्होंने कहा “ हम अब सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था हैं। बेंगलुरु जैसे शहरों में स्टार्टअप बूम - 2014 में सिर्फ 500 स्टार्टअप से आज 1.25 लाख से अधिक है, जो दर्शाता है कि हमने किस तरह की गति बनाई है। एक राष्ट्र एक चुनाव जैसे सुधार यह सुनिश्चित करेंगे कि शासन गति बनाए रखे।” लाखों नागरिकों और विशेषज्ञों के साथ उच्च स्तरीय समिति के परामर्श ने भारत के राष्ट्रपति को 800 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सुधार के आर्थिक, प्रशासनिक और लोकतांत्रिक लाभों की पुष्टि की गई। इसके लिए गठित समिति के सदस्यों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद और कानूनी विशेषज्ञ हरीश साल्वे शामिल थे।श्री एंटनी ने कहा कि इस पहल से लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ेगी, प्रशासनिक दक्षता में सुधार होगा और अनावश्यक सार्वजनिक व्यय में कमी आएगी। उन्होंने सभी हितधारकों से इस कदम का समर्थन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा “ समकालिक चुनाव सरकार को लगातार चुनावी भटकाव से मुक्त करेंगे और शासन की पूरी क्षमता को उजागर करेंगे। अब समय आ गया है कि कांग्रेस द्वारा दशकों पहले की गई गलती को सुधारा जाए और देश को एक स्थिर, विकास-केंद्रित ट्रैक पर वापस लाया जाए।...////...
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