15-Jun-2025 12:34 AM
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नयी दिल्ली 14 जून (संवाददाता) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल में आम आदमी को केंद्र में रखते हुये आर्थिक विकास के साथ-साथ जनकल्याण योजनाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
श्रीमती सीतारमण ने मोदी सरकार के 11 वर्ष के कार्यकाल में आर्थिक क्षेत्रों को लेकर एक अंग्रेजी दैनिक में लेखा लिखा है जिसको उन्होंने एक्स पर शेयर किया है। 11 साल में भारत की विकास यात्रा: सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण से मजबूत अर्थव्यवस्था तक शीर्षक से लिखे गये इस लेख में वित्त मंत्री ने लिखा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं इस समय गंभीर अनिश्चितता के दौर से गुजर रही हैं। भू-आर्थिक विभाजन बढ़ रहा है, वैश्विक कर्ज ऊंचाई पर है और नई तकनीकों की वजह से वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। इन हालातों में भारत एक मजबूत और स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है।
श्रीमती सीतारमण लिखती हैं कि यह स्थिति वर्ष 2013 से बिलकुल अलग है क्योंकि तब भारत को ‘फ्रैजाइल फाइव’ देशों की सूची में शामिल किया गया था। उस समय देश को कम आर्थिक विकास, ऊंची महंगाई, भारी चालू खाता घाटा और कमजोर सरकारी वित्तीय स्थिति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उन्होंने लिखा है कि बीते 11 वर्षों में भारत ने इन सभी चुनौतियों पर काबू पाया है। अब भारत दोहरे घाटे (ट्विन डेफिसिट) वाली अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि ‘फाइव बैलेंस शीट एडवांटेज’ वाला देश बन गया है। यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार किए गए नीतिगत सुधारों और दूरदर्शी फैसलों का नतीजा है।
वित्त मंत्री ने लिखा है कि 2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता आर्थिक विकास को फिर से गति देना था। इसके लिए कई संरचनात्मक सुधार लागू किए गए, जिनमें जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), आईबीसी (दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता), रेरा (रियल एस्टेट विनियमन कानून) जैसे कदम शामिल हैं। कोविड महामारी के दौरान उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और आपातकालीन ऋण गारंटी योजना के ज़रिए छोटे उद्योगों को संकट से उबरने में मदद दी गई। इसी दौरान बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भी खास ध्यान दिया गया। 2013-14 में पूंजीगत व्यय जीडीपी का सिर्फ 1.7 प्रतिशत था, जो 2024-25 में बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया है। यदि इसमें पूंजीगत अनुदान को भी शामिल करें तो यह आंकड़ा 4.1 प्रतिशत तक पहुंचता है।
उन्होंने लिखा है कि बीते 11 वर्षों में देश में 88 नए हवाईअड्डों की शुरुआत हुई, 31,000 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई गई, मेट्रो नेटवर्क चार गुना बढ़ाया गया, बंदरगाहों की क्षमता दोगुनी हुई और राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इन प्रयासों से लॉजिस्टिक्स लागत घटी है और आपूर्ति बाधाएं दूर हुई हैं, जिससे अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक दक्षता बढ़ी है।
श्रीमती सीतारमण ने लिखा है कि सरकार ने आम आदमी को भी केंद्र में रखा। आर्थिक विकास के साथ-साथ जनकल्याण योजनाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया। जनधन योजना के तहत 55 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए, 15 करोड़ घरों को नल से जल उपलब्ध कराया गया, 4 करोड़ परिवारों को मकान दिए गए, 41 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवर मिला और उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ रसोई गैस कनेक्शन दिए गए। इन पहलों से समाज के वंचित तबकों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिली है।
उन्होंने लिखा है कि इन नीतियों के परिणामस्वरूप भारत ने गरीबी के मोर्चे पर भी बड़ी सफलता हासिल की है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश में अत्यधिक गरीबी 2011-12 में 27.1 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर केवल 5.3 प्रतिशत रह गई है। यह दिखाता है कि भारत ने न केवल अपनी आर्थिक बुनियाद को मजबूत किया है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों तक उसका लाभ भी पहुंचाया है।
आर्थिक विकास का उल्लेख करते हुये उन्होंने लिखा है कि भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि का आधार कई मजबूत कारकों पर टिका है। इसमें देश की पांच अहम इकाइयों - कंपनियां, बैंक, घर-परिवार, सरकार और बाहरी क्षेत्र - की मजबूत बैलेंस शीट का बड़ा योगदान है। इसे ही विशेषज्ञ ‘फाइव बैलेंस शीट एडवांटेज’ कह रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि सुधार सिर्फ आर्थिक चक्र की वजह से नहीं, बल्कि सरकार की निरंतर और सक्रिय नीतियों और रेगुलेटरी एजेंसियों की सजग निगरानी का भी नतीजा है।...////...