16-Feb-2022 11:09 PM
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झुंझुनू, 16 फरवरी (AGENCY) पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि वहां सरकारी तंत्र पूरी तरह राजनीति में लिप्त है।
अपने एक दिन के दौरे पर झुंझुनू आए श्री धनखड़ ने आज अपने गाँव किठाना में बातचीत करते हुए कहा कि किसी भी शासन व्यवस्था में यदि अगर शासक संवैधानिक रास्ते से भटक जाता है और कानून के रास्ते से दूर हो जाता है तो निश्चित रूप से चिंता और चिंतन का विषय है। चुनावों के बाद जो हिंसा हुई। वो प्रत्याशित थी। एक तरह से दिल दहलाने वाली थी। उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद मानवाधिकार आयोग की एक समिति ने रिपोर्ट पेश की। जिसमें निश्चित रूप से यह कहा गया कि बंगाल में कानून का नहीं। बल्कि शासक का राज है।
उन्होंने कहा कि मेरा निरंतर प्रयास है कि शासन व्यवस्था संविधान नके दायरे में चले। कानून का राज हो। लेकिन जब प्रशासनिक सेवाओं के लोग राजनीति से प्रेरित होकर निर्णय करते हुए है तो ये चुनौती भी होती है। धनखड़ ने कहा कि वे पश्चिम बंगाल में इस प्रकार के हालात देख रहे है। जहां पर सरकारी तंत्र पूरी तजरह से राजनीति में लिप्त है, जो ठीक नहीं।
श्री धनखड ने कहा कि वे पश्चिम बंगाल में अपने दायित्व को निभा रहे है। ताकि संवैधानिक व्यवस्था स्थापित हो। यह उनकी शपथ का हिस्सा भी है। वे इसी का प्रयास कर रहे है। संविधान में बहुत बड़ी ताकत है। राज्यपाल का दायित्व है कि वे भारतीय संविधान को प्रोटेक्ट करें। प्रदेश और देश के लोगों की सेवा करें। उन्होंने ममता बनर्जी का नाम लिए बगैर कहा कि जो भी लोग संवैधानिक पदों पर बैठे है। उनका दायित्व ज्यादा है। वो डायलॉग, डेलिब्रेशन और डिस्कशन करें। आपसी मेलजोल बढाए। सद्भाव बढाए। कोलोबरेशेन, कॉर्डिनेशन हो। वे हर समय इसके लिए तैयार रहते है। इससे पहले धनखड़ ने किठाना में दो शादियों में हिस्सा लिया। वहीं सांगासी गांव में भी एक कुआं पूजन कार्यक्रम में शामिल हुए।
श्री धनखड ने बतााय कि वे सालासर और खाटूश्यामजी जाकर आज पूर्जा अर्चना की और आशीर्वाद लिया। यही कामना है कि सभी का कल्याण हो। उन्होंने बताया कि धार्मिक कार्यक्रम संतोष देता है। और सुखद अनुभूति होती है। पिछले सालों में चार धाम के विकास के लिए जो काम हुए है। वो भी निसंदेह सराहनीय है। देश में बड़ा बदलाव आ रहा है। हमारे धार्मिक स्थान के रखरखाव में काफी बढोतरी हुई है।
उन्होंने कहा कि यह एक क्रांतिकारी और सामयिक निर्णय है। हम हमारे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ रहे है। जिन आजादी के दीवानों की चर्चा 70 सालों में नहीं हुई। जिन्होंने आजादी में सहयोग किया था। उनकी ना केवल चर्चा हो रही है। बल्कि युवा पीढी उनके बारे में जान रही है। एक राष्ट्र की भावना पैदा हो रही है और सबसे पहले राष्ट्र का विचार हर हिंदुस्तानी के मन में आ रहा है।...////...