02-Sep-2021 10:49 AM
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेंट्रल जेल के अधीक्षक एवं डीआईजी जेल गोपाल प्रसाद ताम्रकार ने इस्तीफा दे दिया। रिटायरमेंट के 10 महीने पहले इस्तीफे के पीछे उन्होंने व्यक्तिगत कारण लिखे हैं। इस्तीफे की सूचना के एवज में एक महीने के वेतन व भत्ते की 1.50 लाख रुपए भी चालान से जमा करा दिए। 32 साल की सेवा में दो बार उन्हें राष्ट्रपति पदक मिला। वह इकलौते ऐसे अधिकारी रहे, जिसे जेल विभाग ने प्रशिक्षण के लिए लंदन भेजा। जेलों में सुधार और इनोवेशन के लिए वह जाने जाएंगे।
जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार 30 जून 2020 को रिटायर होने वाले थे, लेकिन राज्य सरकार द्वारा दो वर्ष सेवा बढ़ाए जाने से वह जून 2022 में रिटायर होते। 10 महीने पहले ही उन्होंने 01 सितंबर को जेल महानिदेशक को अपना इस्तीफा भेज कर दो सितंबर गुरुवार को रिटायर करने आग्रह किया है। अचानक इस्तीफे की वजह उन्होंने व्यक्तिगत और पारिवारिक कारण बताए हैं। इस्तीफे में उन्होंने लिखा है कि वह 25 वर्ष की अनिवार्य सेवा अवधि पूर्ण कर चुके हैं। अब पेंशनर की श्रेणी में आ चुके हैं। उन्हें 2 सितम्बर को सेवानिवृत कर दिया जाए।
32 साल की सेवा में दो बार राष्ट्रपति पदक मिला
मूलत: सागर निवासी और सागर विश्वविद्यालय एमए समाजशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट गोपाल ताम्रकार 7 फरवरी वर्ष 1989 में जेल अधीक्षक के पद पर तैनात हुए थे। 32 साल की सेवा में दो बार राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। वर्ष 1999 में एकमात्र ऐसे अधिकारी थे, जो प्रशिक्षण के लिए लंदन भेजे गए। वहां जेल सुधार को लेकर अध्ययन किया और फिर उसे लौट कर एमपी के जेलों में लागू किया। जबलपुर सेंट्रल जेल में उन्होंने बंदियों के लिए कई सुधार किए। राज्य स्तरीय सर्वोच्च डीजी डिस्क प्राप्त करने वाले पहले केंद्रीय जेल अधीक्षक रहे।
जेल में आधुनिक मुलाकात शुरू कराई
जेलों में आधुनिक मुलाकात शुरू कराई, जो पूरे एमपी में लागू हुआ। जेलों में इग्नू की नि:शुल्क अध्ययन केंद्र संचालित कराए, जिसे बाद में पूरे देश में लागू किया गया। कोविड के संकट के समय उन्होंने बंदियों से मास्क तैयार कराए। उस समय मास्क की भारी किल्लत थी।
ओपन जेल से लेकर बंदियों के कौशल को निखारने के लिए विभिन्न तरह के प्रशिक्षण शुरू कराए। वह सबसे अधिक लगभग आठ वर्षों तक जबलपुर में तीन कार्यकाल के दौरान रहे। रतलाम जिला जेल से उनका सफर शुरू हुआ था। वे दुर्ग, होशंगाबाद, सागर, उज्जैन, सतना, ग्वालियर, भोपाल, सतना, इंदौर में पदस्थ रहे।
ये नवाचार कर चुके
2 अक्तूबर 1992 गांधी जयंती को दुर्ग जेल में देश का पहला जेल झूला घर शुरू कराया।
वर्ष 2005 में केंद्रीय जेल भोपाल में जेल का प्रथम बंदी हित दिवस समारोह आयोजित की। वहीं जेल बंदियों की सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया।
18 जून 2006 को केंद्रीय जेल भोपाल में निरुद्ध गरीब बंदियों की बेटियों का पहली बार सामूहिक विवाह का आयोजन कराया।
वर्ष 2004 में भोपाल में क्षेत्रीय जेल प्रबंधन एवं शोध संस्थान की स्थापना कर जेल अधिकारियों को बेसिक ट्रेनिंग दिलाने वाली एक संस्था स्थापित कराई।
केंद्रीय जेल जबलपुर का 13 जून 2007 को तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान से नेताजी सुभाष चंद्र बोस नामकरण कराया।
ये पहल रही सराहनीय
केंद्रीय जेल जबलपुर में प्रदेश के पहले नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना कराई। पहली बार जबलपुर जेल के बंदियों की आर्केस्ट्रा को शहरवासियों के बीच ले गए। तरंग ऑडिटोरियम में बंदियों की नुक्कड़ नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति कराई। जेल में आधुनिक मुलाकात टफन ग्लास और इंटरकॉम से बंदियों की बातचीत की आधुनिक प्रणाली को स्थापित कराया, जो बाद में पूरे प्रदेश में लागू हुआ।
इग्नू का स्टडी सेंटर की स्थापना कराया
केंद्रीय जेल जबलपुर में देश के पहले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की का स्टडी सेंटर स्थापित कराया। जेल बंदियों को एमबीए आदि की शिक्षा उपलब्ध कराई।
केंद्रीय जेल जबलपुर परिसर में वर्ष 2010 में जेल के बाहर तालाब का निर्माण कराया। जेल के जल स्रोत गर्मी में सुख जाया करते थे। अब ये वर्षभर जल से भरे रहते हैं।
केंद्रीय जेल जबलपुर में अपने पहले कार्यकाल वर्ष 2007 से 2012 के मध्य 50 नए बैरक बनवाए। दूसरे कार्यकल में वर्ष 2018 के बाद सभी को शुरू किया। कोरोना के समय में 50 कमरों को आइसोलेशन बैरक में तब्दील किया।
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