संविधान में वर्णित मूल अधिकारों के विरुद्ध है आपराधिक दंड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक
04-Apr-2022 09:34 PM 8537
नयी दिल्ली 04 अप्रैल (AGENCY) विपक्ष ने आज आरोप लगाया कि आपराधिक दंड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022 मानवीय अधिकारों तथा संविधान में वर्णित मूलभूत अधिकारों का हनन करता है और केन्द्र सरकार इसके माध्यम से कोई राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना चाहती है। वर्ष 1920 के कैदियों की पहचान अधिनियम का स्थान पर लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश इस विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि कैदियों को चिह्नित करने का कानून रद्द करने के लिए इस विधेयक को लाया गया है और इस कानून को ब्रिटिश उपनिवेशवादी सरकार भारत के आजादी के आंदोलन काे कुचलने और स्वतंत्रता सेनानियों का प्रताड़ित करने की नीयत से बनाया था। उम्मीद थी कि आजाद भारत की सरकार इस कानून की जगह जो नया विधेयक लाएगी, वह मानवीय अधिकारों को समाविष्ट करके बनाएगी लेकिन इसमें संविधान की धारा 14, 19 एवं 21 के मूलभूत अधिकारों का ख्याल नहीं रखा गया है। श्री तिवारी ने कहा कि संविधान के मूलभूत अधिकारों को संसद के दोनों सदनों में शत-प्रतिशत बहुमत वाली सरकारें भी नहीं बदल सकतीं हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक में सजायाफ्ता कैदियों व्यवहार का अध्ययन करने के प्रावधान की व्याख्या बहुत विस्तृत होगी। उन्होंने कहा कि सरकार इस विधेयक से संभवत: कोई राजनीतिक मकसद हासिल करना चाहती है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विष्णु दयाल राम ने इस विधेयक के पारित होने से आरोपियों के दोषसिद्ध होने की दर बढ़ जाएगी। नयी तकनीक के प्रयोग से उनकी शिनाख्त आसान हो जाएगी। उन्होंने कहा कि आजकल देश में नये नये प्रकार के ऐसे अपराध होने लगे हैं जिनके बारे में पहले कल्पना तक नहीं की गयी थी। यदि जांच एजेंसियों को सक्षम नहीं बनाया गया तो अपराधियों को पकड़ना और सजा दिलाना मुश्किल हो जाएगा। वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र नहीं हो पाने के कारण अक्सर अपराधी कानून के शिकंजे में नहीं आ पाते हैं। अब उन पर प्रभावी ढंग से अंकुश लग सकेगा। श्री राम ने इस बात का खंडन किया कि यह विधेयक जल्दबाजी में लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक उच्चतम न्यायालय के आदेश और विधि आयोग के सुझावों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि विधि आयोग के 87वें प्रतिवेदन में कहा गया था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता को आधुनिक जरूरतों के हिसाब से अद्यतन करना जरुरी है। उन्होंने श्री तिवारी के उन तर्कों का भी खंडन किया कि समवर्ती सूची में इस प्रकार के कानून बनाना राज्यों का अधिकार है और इस विधेयक से निजता का अधिकार बाधित होता है। उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार संपूर्ण नहीं होता है। बहुत सारे बिन्दुओं पर प्रतिबंध भी लगते हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम के दयानिधि मारन ने कहा कि यह संघीय व्यवस्था के विरुद्ध और जनविरोधी विधेयक है। उन्होंने कहा कि सरकार को जेलों में बिना पर्याप्त साक्ष्य के बंद कैदियों की किस प्रकार से रिहाई हो, इसकी चिंता नहीं है जबकि देश में 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन है। कैद में मौतों की संख्या भी बढ़ रही है। उन्होंने गृह मंत्री से सवाल किया कि ललित मोदी, नीरव मोदी, विजय माल्या जैसों के बारे में क्या कानूनी प्रावधान किये जा रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की घटना और दिल्ली के दंगों के मामलों में पुलिस क्या कर पायी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में डाटा नमूनों के रिकॉर्ड की सुरक्षा एवं दुरुपयोग रोकने के क्या उपाय किये गये हैं।...////...
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