तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करेगा महावीर मन्दिर का 'रामायण शोध संस्थान'
30-Jan-2023 10:59 PM 5655
पटना 30 जनवरी(संवाददाता) हिंदुओं के पवित्र धर्म ग्रंथ 'रामचरितमानस' को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से पटना के महावीर मन्दिर का 'रामायण शोध संस्थान' तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करेगा । महावीर मन्दिर न्यास के सचिव और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अवकाश प्राप्त अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल ने सोमवार को यहां कहा कि संवत् 1631 यानी 1574 ई. में रामनवमी के दिन भक्तशिरोमणि तुलसीदास ने अयोध्या के राममन्दिर में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी । अगले वर्ष यानी 2024 की रामनवमी के दिन इसके 450 वर्ष पूरे होंगे। उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक अवसर पर इस वर्ष की रामनवमी से 2025 की रामनवमी यानी दो वर्षों तक ‘रामायण शोध संस्थान’ के तत्त्वावधान में तुलसी साहित्य से संबंधित सभी उपलब्ध पाण्डुलिपियों का गहन अध्ययन किया जाएगा। आचार्य कुणाल ने बताया कि इसके लिए देशभर के विद्वानों से तुलसी साहित्य से संबंधित सभी प्रकाशित-अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का संकलन किया जा रहा है। उन पाण्डुलिपियों के गहन अध्ययन के बाद समग्र तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित किया जायेगा। महावीर मन्दिर न्यास के सचिव ने बताया कि प्रामाणिक संस्करण नहीं होने से ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी ...चौपाई में एक अक्षर बदल गया। हाल में, रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर मानस का मर्म नहीं समझने वाले अल्पज्ञों द्वारा आक्षेप किये जा रहे हैं। ‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी’ ऐसी ही एक पंक्ति है जिसपर विवाद होता रहा है लेकिन सन् 1810 ई. में कोलकता के विलियम फोर्ट काॅलेज से प्रकाशित पं. सदल मिश्र द्वारा सम्पादित ‘रामचरितमानस’ में यह पाठ ‘ढोल गँवार क्षुद्र पशु नारी’ के रूप में छपा था। यहाँ सूद्र शब्द के बदले क्षुद्र शब्द है। पं. सदल मिश्र बिहार के उद्भट विद्वान् और मानस के मान्य प्रवचनकर्ता थे। यह मानस की सबसे पुरानी प्रकाशित पुस्तक है।...////...
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