किसने और क्यों दिया था गोवर्धन पर्वत को श्राप? इस पहाड़ से जुड़ी हैं कई कथाएं और मान्यताएं
05-Nov-2021 07:15 AM 1850
उज्जैन. मथुरा में ही यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था। सदियों से यहां दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह 7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा,जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि हैं। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं पर एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है। मान्यता है कि इस पर्वत की ऊंचाई साल-दर-साल कम होती जा रही है। इसके पीछे एक कथा है जो इस प्रकार है. - प्राचीन समय में तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्यजी ऋषि गोवर्धन पर्वत के समीप पहुंचे तो इसकी सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए तथा द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि मैं काशी में रहता हूं। आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रहकर पूजन करुंगा। - द्रोणाचल पुत्र के लिए दुखी हो रहे थे, लेकिन गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं आपके साथ चलूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है। आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्यजी ने गोवर्धन की यह बात मान ली। गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे? - तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए। रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन की स्मृति जागृत हो गई और वह सोचने लगा कि भगवान श्रीकृष्ण-राधाजी के साथ यहां आकर बाल्यकाल और किशोरकाल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। - यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। जिससे ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है। - कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले ही आग्रह किया था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्यजी उसे ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिला। - तब ऋषि ने उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया, अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा। फिर एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कलियुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा। Govardhan puja..///..who-and-why-cursed-the-govardhan-mountain-there-are-many-stories-and-beliefs-related-to-this-mountain-326507
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