15-Sep-2021 01:49 PM
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ग्वालियर| मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने मंदिर में शादी के बाद सुरक्षा मांगने की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा- अग्नि के 7 फेरे लेने और विधि विधान पूरा करने के बाद ही एक विवाह वैध माना जाता है। पर देखने में आ रहा है कि शादी को वैध करार देने के लिए जोड़े कोर्ट में सुरक्षा के लिए याचिका दायर कर रहे हैं। ऐसी याचिका सुनवाई के योग्य नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि सिर्फ मंदिर में एक दूसरे को माला पहनाना शादी नहीं है।
इस याचिका में भी ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे पता लगे कि उन्हें कहीं धमकी मिली है या वह पुलिस के पास गए हों। इसलिए इसे खारिज किया जाता है।
मुरैना निवासी एक 23 वर्षीय युवक ने 21 वर्षीय युवती के साथ 16 अगस्त 2021 को ग्वालियर के लोहा मंडी किलागेट स्थित आर्य समाज मंदिर में प्रेम विवाह किया था। आर्य समाज से विवाह का सार्टिफिकेट भी दिया। इसके बाद दोनों ने हाईकोर्ट में अपनी सुरक्षा को लेकर एक याचिका दायर की थी। मंगलवार को याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि दोनों ने प्रेम विवाह किया है। उनके परिजन और अन्य लोग झूठी शिकायतें कर रहे हैं, उन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए। वैवाहिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए उनको सुरक्षा प्रदान की जाए। उनकी जान को लोगों से खतरा है।
शासकीय अधिवक्ता दीपक खोत ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने किसी भी थाने में आवेदन नहीं दिया है। उन्हें किससे खतरा है, किसने धमकी दी है। कौन परेशान कर रहा है। यह भी नहीं बताया है। सीधे कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं लगती है। पूरी सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। टिप्पणी करते हुए कहा कि एक प्रमाण पत्र से विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है। विवाह की एक वैध प्रक्रिया है। अग्नि के 7 फेरे लेने और विधि-विधान को पूरा करने के बाद एक विवाह वैद्य माना जाता है। सिर्फ मंदिर में एक दूसरे को माला पहनाना शादी नहीं है।
सुरक्षा को लेकर दायर हो रही हैं याचिकाएं
आर्य समाज मंदिरों में विवाह के बाद युवक-युवती हाई कोर्ट में सुरक्षा को लेकर याचिका दायर कर रहे हैं। खुद को अपने परिजन से जान का खतरा बताते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग करते हैं। कोर्ट से उनके पक्ष में कोई आदेश हो जाता है तो वे अपने विवाह को वैध करा लेते हैं। इन्हीं तथ्यों को कोर्ट ने पकड़ लिया है। कोर्ट का कहना है कि यदि जान का खतरा है तो पहले पुलिस के पास जाया जाए। वहां मदद न मिले तो कोर्ट में आएं।
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