सुप्रीम कोर्ट का आरक्षित 'वन भूमि' संबंधित विभाग को सौंपने का राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश
16-May-2025 02:24 AM 2737
नयी दिल्ली, 15 मई (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे ‘वन भूमि’ के रूप में चिन्हित राजस्व विभाग के कब्जे वाली सभी भूखंडों को वन विभाग को सौंप दें। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने पुणे में आरक्षित वन भूमि से संबंधित एक मामले में अपने 88 पन्नों के फैसले में यह निर्देश पारित किए। पीठ ने कीमती वन भूमि को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने के गलत धंधे में शामिल राजनेताओं, नौकरशाहों और बिल्डरों की सांठगांठ की कड़ी निंदा की और कई करें निर्देश दिए। शीर्ष अदालत ने संबंधित मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष टीमों का गठन करने का भी निर्देश दिया कि ऐसे सभी भूखंडों का हस्तांतरण एक वर्ष की अवधि के भीतर हो जाए। पीठ ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को यह भी आदेश दिया कि वे इस बात की जांच करने के लिए विशेष जांच दल गठित करें कि राजस्व विभाग के कब्जे में आरक्षित वन भूमि का कोई हिस्सा वानिकी के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किसी निजी व्यक्ति या संस्था को आवंटित किया गया है या नहीं। शीर्ष अदालत ने 28 अगस्त, 1998 को कृषि उद्देश्यों के लिए पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि के आवंटन और उसके बाद 30 अक्टूबर, 1999 को आरआरसीएचएस के पक्ष में इसकी बिक्री की अनुमति दिए जाने को पूरी तरह से अवैध माना। पीठ ने 03 जुलाई, 2007 को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आरआरसीएचएस को दी गई पर्यावरण मंजूरी को भी अवैध करार दिया। पीठ के लिए निर्णय लिखने वाले मुख्य न्यायाधीश ने शुरू में कहा कि वर्तमान मामला इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि किस तरह राजनेताओं, नौकरशाहों और बिल्डरों के बीच सांठगांठ के कारण पिछड़े वर्ग के लोगों के पुनर्वास की आड़ में कीमती वन भूमि को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए परिवर्तित किया जा सकता है, जिनके पूर्वजों से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए कृषि भूमि अधिग्रहित की गई थी। पीठ ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन राजस्व मंत्री और तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था। रिकॉर्ड पर दिखाई देने वाले तथ्य स्पष्ट हैं।” इस मामले में अदालत ने निर्देश दिया कि वन भूमि के रूप में आरक्षित राजस्व विभाग के कब्जे वाले भूखंडों को तीन महीने की अवधि के भीतर वन विभाग को सौंप दिया जाना चाहिए।...////...
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