सुप्रीम कोर्ट ने की महिला अधिवक्ता के यौन उत्पीड़न मामले की याचिका पर सुनवाई
05-Jun-2025 11:24 PM 4152
नई दिल्ली, 05 जून (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने एक महिला अधिवक्ता की ओर से हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर-50 के पुलिस के कुछ अधिकारियों पर यौन उत्पीड़न, मारपीट और अवैध रूप से हिरासत रखने के सिलसिले में अलग अलग दर्ज तीन मुकदमों को दिल्ली स्थानांतरित करने तथा पुलिस सुरक्षा का निर्देश देने की मांग वाली उनकी याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता की दलीलें सुनने के बाद उन्हें गुरुग्राम पुलिस द्वारा उनके (याचिकाकर्ता) खिलाफ दर्ज मुकदमे की एक प्रति पेश करने का निर्देश देते हुए कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार को करेगी ‌। याचिका के अनुसार, यह घटना 21 मई, 2025 को हुई जब याचिकाकर्ता अधिवक्ता एक वैवाहिक मामले के सिलसिले में अपने मुवक्किल के साथ गुरुग्राम के सेक्टर-50 पुलिस स्टेशन गई थी। याचिकाकर्ता का दावा है कि संबंधित पुलिस अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करने में बाधा डाली और उसके साथ मारपीट की। उसने आरोप लगाया कि दो पुरुष अधिकारियों ने उसका यौन उत्पीड़न किया, महिला अधिकारियों ने उसे पीटा और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए उसे जबरन हिरासत में लिया गया। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें गुरुग्राम के एक अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन मेडिको-लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) तैयार किए बिना वापस लाया गया। अगले दिन याचिकाकर्ता ने दिल्ली के तीस हजारी पुलिस चौकी में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद उनके द्वारा दिल्ली के सब्जी मंडी पुलिस स्टेशन और गुरुग्राम के महिला पुलिस स्टेशन में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के विभिन्न प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया। उधर, बीएनएस की धारा 121(1), 132, 221 और 351(3) के तहत गुरुग्राम पुलिस द्वारा उनके (महिला अधिवक्ता) के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया गया। याचिकाकर्ता ने आगे उत्पीड़न, झूठे मुकदमे और शारीरिक नुकसान की आशंका के चलते तीनों मुकदमों को एक साथ स्थानांतरित करने और पुलिस सुरक्षा के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने संबंधित राज्य की शक्ति के दुरुपयोग, लिंग आधारित लक्ष्य के साथ उत्पीड़न, पेशेवर उत्पीड़न और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के उल्लंघन पर चिंता जताई है। उन्होंने दलील दी कि गिरफ्तारी ज्ञापन तैयार नहीं किया गया था और हिरासत के दौरान उनके परिवार या सहकर्मियों को कोई सूचना नहीं दी गई थी, जो डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और सतेंद्र कुमार, अंतिल बनाम सीबीआई मामले में आए फैसले में निर्धारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी), 21 और 22 के तहत उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया है।...////...
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