08-May-2024 10:08 PM
2879
नयी दिल्ली 08 मई (संवाददाता) फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने वर्ष 2030 तक भारत को थैलेसीमिया मुक्त बनाने की अपील करते हुये आज कहा कि जिस तरह शादी विवाह के लिए कुंडली मिलान की जाती है उसी तरह रक्त जांच कर यह पता लगाना भी बहुत जरूरी है कि दंपति सूत्र में बंधने जा रहे दोनों व्यक्ति थैलेसीमिया पीड़ित तो नहीं है।
अस्पताल के हेमेटोलॉजी, पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी ओंकोलॉजी एंड बीएमटी विभाग ने विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर एक खास प्रोग्राम - ‘थैलेसीमिया-फ्रीः टुगेदर वी कैन’ का आयोजन किया। इसका मकसद, सरवाइवर स्टोरीज़ के माध्यम से थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। इस मौके पर कई जानी-मानी हस्तियों के अलावा बॉलीवुड और टीवी कलाकार भी उपस्थित थे।
बॉलीवुड अभिनेता रज़ा मुराद के साथ ही टीवी कलाकार डोनल बिष्ट और नीता शेट्टी भी उपस्थित थे। फोर्टिस अस्पताल में थैलेसीमिया का सफल उपचार करा चुके बच्चे भी इस मौके पर मौजूद थे जिन्होंने थैलेसीमिया के साथ जीवन बिताने के अपने अनुभवों को साझा किया।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के प्रमुख निदेशक एवं मुख्य बीएमटी डॉ राहुल भार्गव ने कहा, “थैलेसीमिया दुनियाभर में आनुवांशिकी से प्राप्त होने वाले सबसे प्रमुख ब्लड डिसऑर्डर में से एक है, और दुनिया में हर आठवां थैलेसीमिक बच्चा भारत में रहता है। दुनिया में, थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त बच्चों की सबसे अधिक संख्या भारत में है। दुर्भाग्यवश बहुत से लोगों को तब तक यह पता नहीं होता कि वे इस कंडीशन से ग्रस्त हैं जबकि वे किसी गंभीर स्वास्थ्य संकट का शिकार नहीं बनते। यही कारण है कि इस रोग की शुरुआती स्टेज में ही पहचान करने लिए समय-समय पर स्क्रीनिंग और टेस्टिंग करना काफी महत्वूपर्ण होता है। आमतौर पर, प्रेग्नेंसी के 10वें सप्ताह में स्क्रीनिंग टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है ताकि इस रोग से बचा जा सके। लेकिन, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इससे जुड़े विभिन्न हितधारकों को सक्रिय रूप से योगदान करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब देश को 2047 तक विकसित बनाने की बात ही जा रही है तो वर्ष 2030 तक थैलेसीमिया मुक्त बनाने पर भी जोर दिया जाना चाहिए और इस दिशा में यह अस्पताल काम कर रहा है।”
अस्पताल के पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, पिडियाट्रिक हेमेटो ओंकोलॉजी एंड बीएमटी के प्रमुख निदेशक एवं प्रमुख डॉ विकास दुआ ने कहा, “भारत को दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी का दर्जा हासिल है जहां करीब 4.2 करोड़ थैलेसीमिया कैरियर और लगभग 100,000 मरीज थैलेसीमिया सिंड्रोम से ग्रस्त हैं। इन चौंकाने वाले आंकड़ों के बावजूद देश में थैलेसीमिया के उपचार की सुविधाओं के बारे में जानकारी का अभाव है। लेकिन सीआरआईएसपीआर जीन एडिटिंग थैलेसीमिया से बचाव के लिए बेहद महत्वपूर्ण थेरेपी है। फोर्टिस गुरुग्राम के पास बेहद जटिल मामलों के इलाज के लिए हेमेटोलॉजिस्ट की एक समर्पित टीम के अलावा शानदार मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और एडवांस टैक्नोलॉजी उपलब्ध है। पिछले साल, हमने कोल इंडिया के साथ मिलकर, इस सार्वजिनक क्षेत्र के उपक्रम के सीएसआर इनीशिएटिव के अंतर्गत ‘थैलेसीमिया बाल सेवा योजना’ के जरिए समाज के कम सुविधाप्राप्त तबकों के थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों का उपचार किया। अब तक हम तीन बच्चों का इलाज इस पहल के तहत् कर चुके हैं।”
थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास के प्रति अपना समर्थन देते हुए रज़ा मुराद ने कहा, “फोर्टिस हैल्थकेयर द्वारा इस परोपकारी पहल का आयोजन सुखद घटना है। इसके जरिए थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ उचित उपचार और देखभाल के महत्व को भी रेखांकित किया गया। जेनेटिक विकार होने की वजह से थैलेसीमिया भारत में काफी प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है जिसके कारण अपर्याप्त हिमोग्लोबिन का निर्माण होता है और परिणामस्वरूप लाल रक्त कणिकाओं (रैड ब्लड सैल्स) की कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा, बार-बार अक्सर मेडिकल केयर की आवश्यकता और अन्य संबंधित स्वास्थ्य चुनौतियों की वजह से मरीज के लिए यह भावनात्मक दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन सही उपचार और सपोर्ट मिलने से हम काफी हद तक लोगों की लाइफ क्वालिटी में सुधार कर बेहतर भविष्य के लिए उम्मीद बढ़ा सकते हैं।”
डोनल बिष्ट ने कहा, “ थैलेसीमिया से बचाव को केवल मेडिकल चुनौती की तरह नहीं लेना चाहिए बल्कि स्वस्थ समाज का निर्माण करना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी होना चाहिए। शहरी क्षेत्रों में इसके बारे में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन सभी हितधारकों को नियमित स्क्रीनिंग, खासतौर से टियर 1 और टियर 2 शहरों में जहां यह रोग अधिक फैला हुआ है, के लिए आपस में अवश्य सहयोग करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रेग्नकेंट महिलाओं की हैल्थ स्क्रीनिंग अनिवार्य होनी चाहिए और आशा कर्मियों द्वारा इसे सुपरवाइज़ किया जाना चाहिए ताकि इस आनुवांशिक विकार के प्रसार पर अंकुश लगाया जा सके।”
नीता शेट्टी ने कहा, “थैलेसीमिया मरीजों को आजीवन इलाज की जरूरत होती है और ऐसे में उनके लिए सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुविधा का इंतजाम करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि इन मरीजों को बार-बार ट्रांसफ्यून और स्पेश्यलाइज़्ड उपचार की जरूरत होती है। इस कारण मरीजों के परिवारों समेत हैल्थकेयर पर काफी वित्तीय तथा भावनात्मक दबाव बढ़ता है। अगली पीढ़ी को थैलेसीमिया से बचाने के लिए प्रीमैराइटल स्क्रीनिंग और जेनेटिक काउंसलिंग काफी जरूरत कदम हैं क्योंकि इनसे संभावित कैरियर की पहचान कर सुरक्षित भविष्य सुनिश्चत किया जा सकता है।...////...